स्वागत सन्देश....

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"पर" नहीं लेकिन.... "परवाज़ "मगर रखतें है!!


Thursday, November 25, 2010

जातिवाद के मुँह पर ज़ोरदार तमाचा....मैं बिहार हूँ ....

जब भी कभी चुनाव आते है...तो मै उनमे बड़ी दिलचस्पी लेता हूँ....या फिर यूँ कहूँ कि.... उस पर ख़ास तवज्जो देता हूँ! और उसकी वजह भी साफ़ है....क्योकि मेरे घर पर नेताओं का आना जाना लगा रहता है....तो राजनीति की बाते चलना भी लाज़मी है! इसलिए बचपन से ही... राजनीति से कुछ ज्यादा ही लगाव है! और बात जब राजनीति की चले तो... मज़ा अपने आप ही आने लगता है! खैर छोड़िए.... 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एक न्यूज़ चैनल में मुझे... मेरे हिसाब से ही काम सौंपा गया! सबसे पहले मैंने प्रोग्राम का नाम रखा... "बोल बिहार बोल".... क्योंकि उस प्रोग्राम को मुझे ही प्रोड्यूस करना था... अब शायद तीन या चार दिनों में ग्राफिक्स और एडिटिंग का काम पूरा करके, मैंने प्रोग्राम शुरू कर दिया! और अपने रिपोर्टर को लाइव प्रोग्राम के लिए ओo बीo वैन के साथ बिहार की अलग -अलग विधानसभा सीटो की स्थिति और वहां की जनता की राय में जानने के लिए भेज दिया! फिर क्या था ...रोज़ आधे घंटे का प्रोग्राम दोपहर को और आधे घंटे का प्रोग्राम शाम को देना होता था!

सुबह को कहीं तो शाम को किसी और विधानसभा क्षेत्र की जनता से रु-ब-रु होते थे! सुबह कोई नेता जनता के साथ खड़ा होकर लालू-पासवान का गुणगान करता.... तो कोई शाम को नितीश के कसीदे पढता....तो कभी किसी कॉलेज के बाहर कोई युवा नेता छात्रो को संबोधित करते हुए राहुल भैया का सन्देश देता! ये उस वक़्त की बात है जब 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन पत्र भरे जा रहे थे! अब तो ये हर रोज़ का किस्सा हो गया था! मै ख़ामोशी के साथ सबकी बाते सुनता और फिर प्रोग्राम ख़त्म होने के बाद अपने सीनियर से ...इन सब पर डिस्कस करता! लेकिन रात को घर लौटते वक़्त दिमाग में यही रहता कि...किसको चुनेगी बिहार की ये जनता ...? किसको चुनेगा बिहार का बरसो से हाशिये पर रहा मुस्लिम समाज...? किसकी होगी ताजपोशी...? कौन पहनेगा का बिहार का ताज...? आखिर क्या फैसला करेगी बिहार की जनता? क्या इस बार भी बिहार की जनता हमेशा की तरह ठगी सी रह जायेगी....? या फिर पलट कर अपने वोटों से... जातिवाद के मुँह पर ज़ोरदार तमाचा मारेगी?

बस इसी उलझन में दिन कब निकलते गए पता ही नहीं चला! और एक दिन वो भी आ गया... जब वोटों की गिनती का काम शुरू हो चुका था! सुबह से ही मन में उत्सुकता थी कि .... क्या नतीजे आयेंगे? लेकिन धीरे - धीरे सभी टी.वी. चैनल पर रुझान दिखने शुरू हो गए! उन रुझान को देखते हुए .... एक बार फिर से नीतीश के तीरों ने सभी को चित कर दिया था! बिहार में एक बार फिर से जे डी (यू) और बी जे पी का गठबंधन होता दिख रहा था...बस फिर क्या था एक्जिट पोल आते - आते सारे पटना क्या ...पूरे देश में एनडीए के समर्थको में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी... क्या ये विकास की जीत थी...? क्या ये शिक्षा की जीत थी...? क्या ये बिहार की जनता की तरफ से जातिवाद के मुँह पर करारा तमाचा था...? शायद इन सब का जवाब सिर्फ एक था ...."हाँ"...! और मुझे अपने सवाल का जवाब मिल गया था!

Thursday, October 14, 2010

राजनीति... या रिश्तेदारी ???

लोकतंत्र का मतलब है ...जनता के द्वारा , जनता के लिए, जनता का शासन.....! लेकिन बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र.... हालात को देखते हुए अगर कहा जाये…. कि नेताओं के द्वारा...., रिश्तेदारों के लिए...., बिहार का शासन.... तो गलत न होगा...! जी हाँ, बिहार विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों की घोषणा सभी राजनैतिक पार्टियों ने कर तो दी! लेकिन इन उम्मीदवारों की फहरिस्त में...सभी पार्टियों ने सम्बन्धियों और परिवारवाद को ख़ास तवज्जो दी है! कोई पार्टी मुखिया अपने भाइयो को टिकट दे रहा है तो कोई अपने रिश्तेदारों को....

लोजपा मुखिया रामविलास पासवान ने अपने एक भाई रामचंद्र पासवान (जो कि पूर्व सांसद है..) को "कुशेश्वर अस्थन" विधान सभा क्षेत्र से टिकट दिया है.... तो दूसरे भाई पशुपति कुमार पारस को "अलौली" विधानसभा सीट से खड़ा किया है! वहीँ "सोनबरसा" सीट से अपनी करीबी रिश्तेदार "सरिता देवी" को अपना उम्मीदवार बनाया है! लोजपा से ही राज्य सभा सांसद साबिर अली की पत्नि यास्मीन अली को नरकटियागंज से पार्टी ने मैदान में उतारा है! इसी के साथ पार्टी उपाध्यक्ष "सूरजभान सिंह" के साले "रमेश सिंह".... "विभूतिपुर" विधानसभा क्षेत्र से लोजपा के लिए चुनाव लड़ेगे! पूर्व विधायक राजन तिवारी.... (जिस पर हत्या का मुकदमा दर्ज है ) के भाई.... राजू तिवारी "गोबिन्द गंज" सीट से खड़े होकर एल. जे. पी. के लिए वोट मांगेंगे!

पिछले पांच सालो से बिहार की कुर्सी पर राज करने वाली पार्टी.... जद-यु की .... बात की जाये तो वो भी वंशवाद के दंश से नहीं बच पायी! जहाँ एक ओर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डा. जगन्नाथ मिश्रा के बेटे " नितीश मिश्रा " को "झंझारपुर" सीट से खड़ा किया गया है तो वहीँ दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री "रामसुंदर दास" के बेटे "संजय़ कुमार" को "राजापकड़" विधान सभा सीट का उम्मीदवार बनाया है! और राहुल शर्मा को "घोंसी" सीट से मैदान में उतारा गया है ! हम आपको बता दे क़ि राहुल शर्मा ...., जद-यु के ही जहानाबाद सीट से सांसद जगदीश शर्मा के बेटे है१

इधर "जमुई" सीट से "अजय प्रताप सिंह" जद-यु के लिए तीरंदाजी करेंगे.....जो क़ि बिहार में मंत्री "नरेंद्र शर्मा सिंह" के बेटे है! तो उधर पूर्व केन्द्रीय मंत्री मो. तस्लीमुद्दीन के बेटे "सरफ़राज़ आलम "....."जोकीहाट" विधान सभा क्षेत्र पर जेडी-यु की कमान संभालेंगे! एक ओर एम.एल.ए. शशि कुमार राय के भाई "नंदकुमार राय"......."बरुराज"सीट से उम्मीदवार है! तो दूसरी तरफ "देवनाथ यादव" की पत्नि "गुलज़ार देवी"....."फूलपारस" विधानसभा सीट से जद-यु की अगुआई करेगी! वहीँ लोकसभा सांसद माहेश्वर हजारी के पिता "सेवक हजारी" को और सांसद विश्वमोहन शर्मा की पत्नि सुजाता को भी जद-यु ने अपना उम्मीदवार बनाया है!

आइये अब बात करते है .... इंडियन नेशनल कांग्रेस की.....जिसने बिहार की सत्ता पर सबसे ज्यादा राज किया और बिहार को 18 कांग्रेसी मुख्यमंत्री भी दिए! कांग्रेस ने "हाजीपुर" विधान सभा क्षेत्र के लिए निशाद की पोती .....रमा को उम्मीदवार बनाया है! दूसरी ओर राम के बेटे विजय कुमार राम को "हरसिद्धि" सीट से पंजे की पहचान दी है!

बिहार की सत्ता का 15 वर्षो तक सुख भोगने वाली राष्ट्रीय जनता दल का हाल भी कुछ इसी तरह का है! आर.जे.डी. ने भी परिवारवाद को तवज्जो देते हुए .....पूर्व केन्द्रीय मंत्री एम.ए.ए. फातमी के बेटे फ़राज़ फातमी को आर.जे.डी. ने "केवटी" से टिकट दिया है...तो पूर्व केन्द्रीय मंत्री "रघुनाथ झा" के बेटे "अजीत कुमार झा" को "स्योहार" विधानसभा क्षेत्र से लालटेन जलने का ज़िम्मा सौंपा है! वहीँ पूर्व मंत्री " सीताराम सिंह " के बेटे "राणा रंधीर" को आर.जे.डी.ने "मधुबन" सीट का टिकट थमाया है! और आखिर में आर.जे.डी. से एम.पी. जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर को बी.जे.पी. ने "बक्सर " सीट पर अपना प्रत्याशी चुना है !

जबकि पूर्व सांसद और विधायक आनंद मोहन, पप्पू यादव, मुन्ना शुक्ल और शहाबुद्दीन जैसे कुछ आरोपियों की पत्नियाँ पहले से ही टिकट पा चुकी है!

राजनेताओं का मुस्लिम अल्पसंख्यक प्रेम

बिहार विधान सभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है! सभी पार्टियां चुनावी दंगल मे कूदने के लिये कमर कस चुकी है! जहाँ एक तरफ पन्द्रह साल राज कर चुके लालू यादव…. राम विलास पासवान के साथ गठबन्धन की नाव पर सवार हो कर चुनावी बैतरणी पार कर के बिहार की सत्ता पर काबिज़ होने की योजना बना रहें है! वही नीतीश कुमार अपने किये गये विकास कार्यो के बल पर अपनी जीत के दावे कर रहे है.... वही बात अगर कांग्रेस की जाये तो पार्टी अकेले आगे बढ़ने की नीति पर चल रही है। वजह भी साफ है ......जी हाँ, इसकी वजह है राहुल गाँधी का चुनाव अभियान अपने हाथ मे लेना ...कुल मिला कर देखा जाये तो लड़ाई दिलचस्प होने के पूरे आसार दिख रहे है। लेकिन अगर हम मेन मुकाबले की बात करे... तो वो है लालू राबडी के 15 साल बनाम नितीश कुमार के 5 साल ......ये तो बात हुई सियासी दलो की....लेकिन अब हम बात करने जा रहे है उस जनता की.... जिससे हर चुनाव से पहले किये जाते है बडे़ बडे़ वादे... और जैसे ही चुनाव खत्म होता है.... साथ ही खत्म हो जाते है सारे वादे........ इस पूरी कवायद मे सबसे ज्यादा अगर अपने आप को ठगा सा महसूस करता है.... तो वो है बिहार का अल्पसंख्यक मुस्लिम मतदाता...। चुनाव आते ही राजनीति की मन्डी मे अल्पसंख्यक नेताओ को लगभग सभी पार्टिया हाईलाइट कर रही है। सब अपने को मुसलमानो का सबसे हितैषी साबित करने मे लगे है। इस कवायद मे कांग्रेस ने जहां महबूब अली कैसर को बिहार प्रदेश की कमान सौपी..... वही नीतीश कुमार ने आलोचनाओ की परवाह किये बगैर भाजपा के धुरविरोधी छवि वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री तस्लीमुद्दीन को अपने खे़मे मे शामिल कर अल्पसंख्यक मतदाताओ को रिझाने का पूरी तैयारी कर ली..... ऐसे मे आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव कैसे पीछे रह सकते है। उन्होने ने भी जेडीयू के पूर्व विधायक रियाजुल हक को गाजे बाजे के साथ अपनी पार्टी मे शामिल कर लिया... लेकिन ऐसे मे बिहार की जनता…. बिहार की कमानकिसको सौंपती है??? ये तो वक्त ही बतायेगा लेकिन सवाल ये उठता है... कि क्या सियासी दलो का ये मुस्लिम प्रेम चुनाव के साथ ही ख़त्म हो जाएगा या फ़िर क़ायम रहेगा???

बाहुबलियों का दम ...

बिहार की राजनीति पर चर्चा हो और बाहुबलियो की बात ना हो ऐसा कैसे हो सकता है…. जी हाँ, इस बार भी विधान सभा चुनाव मे इनकी हनक साफ दिख रही है। जहाँ तक बात है चुनाव आयोग के कडे रुख की.... तो उसका भी जबाब अपनी पत्नियो को मैदान मे उतार कर दे दिया है। वही अगर बात वर्तमान विधान सभा की करे... तो कई महिला विधायक ऐसी है.... जिनके पतियो की अपराधिक पृष्ठभूमि रही है.... जैसे: कुन्ती देवी, पूर्णिमा देवी, पूनम देवी और मुन्नी देवी ! वही इस बार के चुनाव पर नज़र डाले तो लालगंज के विधायक मुन्ना शुक्ला राजद सरकार के पूर्व मंत्री राजद सरकार के पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या में दोषी करार दिये गये हैं और इस बार चुनावी अखाड़े में उनकी पत्नी अन्नू शुक्ला मतदाआओं से वोट मांगती नजर आएंगी। जदयू ने अन्नू शुक्ला को लालगंज से अपना प्रत्याशी घोषित किया है।

हाल ही में कांग्रेस में शामिल होने वाली लवली आनंद को पार्टी ने सहरसा जिले के आलमनगर से अपना प्रत्याशी बनाया है। वे कोसी क्षेत्र के बाहुबली आनंद मोहन की पत्नी हैं। वही कोसी क्षेत्र मे आतंक का पर्याय माने जाने वाले पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव, माकपा विधायक अजित सरकार की हत्या के मामले में दोषी करार दिए गए हैं! और उन्होंने अपनी पत्नी तथा पूर्व सांसद रंजीता रंजन को चुनावी अखाड़े में उतारा है। हत्या, रंगदारी और अपहरण के दो दर्जन से भी अधिक मामलों का सामना कर रहे अवधेश मंडल की पत्नी बीमा भारती रुपौली से प्रत्याशी हैं। पूर्णिया जिले के रूपौली से राजद के टिकट पर जीत कर विधानसभा में पहुंचने वाली बीमा भारती ने इस बार पाला बदलकर जदयू का दामन थामा है।

Wednesday, November 11, 2009

थप्पड़ - अबू आज़मी को? लोकतंत्र को? या फिर राष्ट्र-भाषा हिंदी को?

भारत के लोकतंत्र से तो सभी वाकिफ है! जहाँ के संविधान के अनुसार प्रत्येक भारतीय को अपनी बात किसी भी भाषा में कहने का पूरा अधिकार है! मगर आप अपनी बात, यदि राष्ट्रिय भाषा हिंदी में कर रहे है, तो कही कोई अपराध तो नहीं कर रहे! 09 नवम्बर 2009 को महाराष्ट्र की विधान सभा में शपथ समारोह के दौरान हुए हंगामे और मार-पीट को देख कर तो यही लगता है! कि हिन्दुस्तान में रहकर हिंदी बोलना एक संगीन अपराध है! राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना महाराष्ट्र की सड़कों पर जो अब तक करती आई थी,वो उसने विधानसभा में कर दिया! हिंदी में शपथ लेने से नाराज़ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के विधायकों ने समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आज़मी को थप्पड़ मारा, मारपीट की और उनका माइक उखाड़ कर फेंक दिया! .इसके पहले एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने राज्य के सभी नवनिर्वाचित विधायकों को पत्र लिखकर उन्हें मराठी में शपथ लेने या नतीजे भुगतने की धमकी दी थी! बावजूद इसके महाराष्ट्र विधान सभा में सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम नहीं किये गए! इसके पहले भी राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र में हिंदीभाषियों को निशाना बनाती रही है.माना जा रहा है कि राज ठाकरे की पार्टी मराठीभाषी मतदाताओं को शिव सेना से हथियाने के लिए ये सब कर रही है!
परन्तु कुछ लोगो का ये कहना है कि महाराष्ट्र में शिव सेना के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए कांग्रेस पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, राज ठाकरे की मनसे को रोकने की बिलकुल भी कोशिश नहीं करती! ताकि मराठी वोट शिव सेना और मनसे में बँट जाये और कांग्रेस - एनसीपी की सत्ता कायम रहे! वजह चाहे जो भी हो लेकिन मनसे के विधायको ने महाराष्ट्र - विधानसभा में जो हंगामा किया और समाजवादी पार्टी के नवनिर्वाचित विधायक अबू आज़मी को जो थप्पड़ मारा उसकी गूँज से पूरा देश सन्न है! और 9/11 का ये दिन महाराष्ट्र विधानसभा के साथ-साथ पूरे देश के लिए शर्मनाक साबित हुआ! क्या ये थप्पड़ अबू आज़मी को था??? क्या ये थप्पड़ लोकतंत्र को था??? या फिर हिंदुस्तान की राष्ट्र भाषा हिंदी को ???

Monday, April 20, 2009

शूज़ - इश्यूज़ .......

अब तक राजनीति में लोगो पर " कीचड़ उछालने " का मुहावरा चलता था! लेकिन अब जूता उछालने का नया प्रचलन देखने में आ रहा है! या फिर ये कहे कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में कीचड़ का स्थान जूतों ने ले लिया है! ऐसा लगता है, जो काम "वोट" नहीं कर पाता, वह काम "जूते" से आसानी से हो जाता है! कम से कम टाइटलर मामले में तो यही देखने को आया है!
जूता फेंकने का ये सिलसिला एक इराकी पत्रकार के द्वारा शुरू किया गया था! जिसने पिछले साल एक संवाददाता सम्मलेन में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश पर जूता फेंका था! जिसके लिए मुन्तज़र - अल - जैदी नाम के इस पत्रकार को १ वर्ष की सजा सुनाई गई थी! लेकिन इराक की ये पद्यति भारत में उस समय देखने को मिली जब गृह मंत्री पी. चिदंबरम एक पत्रकार सम्मलेन को संबोधित कर रहे थे! उसी समय एक सिख पत्रकार जरनैल सिंह ने, कांग्रेस उम्मीदवार जगदीश टाइटलर को १९८४ के सिख विरोधी दंगो के मामले में सीबीआई की ओर से क्लीन चिट मिल जाने के मुद्दे पर, गृह मंत्री पी. चिदंबरम की ओर जूता उछाल दिया था! ये बात और है कि जूता चिदंबरम के पास से निकल गया ओर इसके नतीजतन कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार को अपनी उम्मीदवारी गंवानी पड़ी! मगर चिदंबरम ने उस पत्रकार को माफ़ तो कर ही दिया और साथ ही साथ प्रशासन की ओर से भी कोई करवाई नहीं हुई!
इस घटना के दो दिन बाद ही दिल्ली कॉलेज के एक व्याख्याता ने स्टाफ काउंसिल की बैठक में अपने एक सहयोगी पर जूते से निशाना साधने की कोशिश की! जिसे अन्य शिक्षको ने विफल कर दिया! अभी इन घटनाओं को लोग भुला भी नहीं पाए थे, कि इसी तरह की एक घटना उस वक़्त घटी जब एक सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षक रामकुमार ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में एक चुनावी रैली में सांसद नवीन जिंदल पर जूता फेंका ! हालांकि चिदम्बरम की तरह जूता नवीन को भी नहीं लगा! लेकिन बाद में पता चला कि उसका गुस्सा कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ था! इस पर नवीन जिंदल ने सफाई दी थी, कि वह शिक्षक शराब के नशे में था!
लगता है इस बार जनता नेताओं से बेहद नाराज़ है! क्योंकि कुछ ही दिन बाद भाजपा के पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी कटनी में आयोजित एक आम सभा को संबोधित कर रहे थे, कि इसी दौरान भाजपा के ही कथित कार्यकर्त्ता ने चप्पल उछालकर काफी अपशब्दों का प्रयोग किया! लालकृष्ण आडवाणी जैसे ही सभा को संबोधित करने पहुंचे थे, उसी दौरान दर्शक दीर्घ में बैठे पावस अग्रवाल नाम के भाजपा कार्यकर्त्ता ने खड़ाऊ (लकडी की चप्पल) लालकृष्ण आडवाणी की तरफ उछालकर फेंकी थी! लेकिन अन्य मामलो की तरह वह खड़ाऊ भी आडवाणी को लगने की बजाय उस पर गिरी जिस कुर्सी पर प्रभारी मंत्री बैठे थे!
और तो और खबरें ये भी सुनने में आ रही है कि अब जूता फेंकने की ट्रेनिंग भी दी जा रही है??? और लोग टारगेट पर जूता फेंकने की प्रैक्टिस भी कर रहे है??? अब नेताओं को सब कुछ सोच समझ कर बोलना होगा..... कहीं फिर से कोई शूज़ इश्यु न हो जाये !!!

Saturday, April 04, 2009

वोट दो......पर किसे ???

भारत एक लोकतान्त्रिक देश है!
जहाँ पर लोकतान्त्रिक समाज की कमान को सँभालने के लिए ही चुनाव कराये जाते है! जिससे जनता अपने वोटो के आधार पर उस नेता या उस पार्टी को चुनती है, जो देश को प्रगति के शिखर तक पहुँचाने में सक्षम हो, और जनता की समस्याओं का समाधान करे! लेकिन आजकल राजनैतिक पार्टियाँ और राजनेता सिर्फ वोट पाने के लिए भोली-भाली जनता से झूठे वादे करते है? और सत्ता में आने के लिए धर्म , जाति , और आरक्षण के नाम पर लोगो के बीच फूट डालते है? और अपना वोट बैंक इकट्ठा करते है?
जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आते जा रहे है तो चुनावी सरगर्मियां भी तेज़ होती जा रही है! नगर-नगर और गाँव-गाँव जाकर रोड-शो किये जा रहे है, जनता के साथ वक़्त बिताया जा रहा है, और जगह -जगह जनसभाओं को सम्बोधित किया जा रह है! क्योंकि अभी इन नेताओं को जनता के वोटो की ज़रुरत है! इसीलिए हाथ जोड़कर जनता से वोट मांगने जा रहे है! और जनता से बड़े-बड़े वादे कर रहे है! लेकिन जैसे ही सत्ता हासिल करेंगे भूल जायेगे सारे वादे - सारी कसमे !!!
राजनीति की अगर बात की जाए तो आज के नेताओं को शायद ही राजनीति की परिभाषा आती हो? क्योंकि आजकल राजनीति...... धर्म , जाति , आरक्षण , और क्षेत्रवाद के मुद्दों पर होने लगी है! राजनीति आतंकवाद के खिलाफ , देश के विकास और जनकल्याण के नाम पर होनी चाहिए.... ना कि ... मज़हब और जाति के नाम पर .....परन्तु भारत में आज राजनैतिक पार्टियाँ ज्यादातर इन्ही मुद्दों को घसीटती है!
सबसे पहले बात करते है , भाजपा...... यानी भारतीय जनता पार्टी की! भारतीय जनता पार्टी मतलब भारत की जनता की पार्टी! और भारत की इस जनता में सभी धर्म, जाति और समुदाय के लोग आते है! चाहे वो हिन्दु हो , मुस्लिम हो , सिक्ख हो , इसाई हो , या बौद्ध, और या फिर किसी भी जाति का हो! लेकिन जैसे ही चुनाव करीब आते है, भाजपा राम मंदिर का मुद्दा ही उठाती है!
पिछले दिनों गोरखपुर में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा था यदि भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला तो कानून बना कर अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करायेगे! और फास्ट ट्रैक कोर्ट में मामले को लेकर ६ माह के भीतर फैसला करायगे! मुंबई के कांग्रेस अध्यक्ष कृपा शंकर सिंह का कहना है कि भाजपा कहती है , खाते है क़सम भगवान् राम की, कि राम मंदिर अयोध्या में ही बनवायेगे! मगर तारीख नहीं बतायेगे! यदि क़सम खानी है तो अटल जी कि खाए! राम के नाम की क़सम क्यों तोड़ते है?
यदि बात की जाए बहुजन समाज पार्टी की तो बहन कुमारी मायावती का भी एक ही चुनावी मुद्दा है - अल्पसंख्यको और दलितों के आरक्षण का मुद्दा! वैसे तो बसपा का नारा है - " सर्वजन हिताय एवं सर्वजन सुखाय " ! अगर सभी जनों के हित और सुख का नारा देती है तो सिर्फ दलितों और अल्प्संख्को के बारे में ही क्यों सोचती है! जितने सरकारी खजाने का दुर्रोपयोग अपनी मूर्तियाँ और हाथी बनवाने में कर रही है यदि उतने पैसे अल्पसंख्यको और दलितों के आरक्षण में खर्च करे तो शायद ही आरक्षण का मुद्दा उठाने की नौबत पड़े ? लेकिन माया मेमसाब को कुछ न कुछ मुद्दा तो चाहिए वोट बैंक के लिए.....
चलते है अब देश की सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस की ओर.... , चुनाव से लगभग २ महीने पहले सरकार ने करीब ६७ करोड़ वोटरों को रिझाने के लिए अपना खजाना खोलते हुए सेवाकर और उत्पादन शुल्क में कटौती का ऐलान किया था! जिसे विपक्षी पार्टी भाजपा ने चुनावी लालीपॉप करार दिया था! तो मतलब साफ़ है की चुनाव से पहले " हम तुम्हारे है सनम " और सत्ता में आने के बाद , "हम आपके है कौन? " कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में आतंकवाद को बढ़ावा, कांग्रेस सरकार महंगाई पर लगाम लगाने में नाकाम, और किसानो की आत्महत्या इत्यादि, इन्ही तरह के आरोप लगते आये है! और तो और........ २६/११ को होटल ताज, सी एस टी, नरीमन पॉइंट, और ओबेरॉय होटल पर हुए हमलो के बाद से तो कांग्रेस का ग्राफ गिरता दिखा! और नौबत यहाँ तक आ गई कि केन्द्रीय ग्रह मंत्री के साथ - साथ महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री को भी इस्तीफा देना पड़ा!
शिवसेना और मनसे (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना) कि तो बात ही छोड़ दी जाये तो बेहतर होगा!क्योंकि ये राजनैतिक पार्टियाँ कम....... क्षेत्रीयवाद और भाषावादी पार्टियाँ ज्यादा लगती है! यदि इन पार्टियों का बस चले तो महाराष्ट्र को भारत से अलग ही कर दे ? या फिर कुछ इस तरह से कहा जाये कि महाराष्ट्र का संविधान कुछ अलग है? क्योंकि भारतीय संविधान की धारा १९ के अंतर्गत कोई भी भारतीय नागरिक भारत में कहीं भी आ-जा सकता है, कहीं भी व्यवसाय कर सकता है, और कहीं भी रहने का पूर्ण अधिकार रखता है!
अब रुख करते है उस पार्टी की ओर जो हमेशा से ही अपने आप को मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी बताती रही है..... सपा यानी समाजवादी पार्टी की ओर ! सपा एक ऐसी राजनैतिक पार्टी है जो ज्यादातर मुस्लिम वोट पर निर्भर करती है! लेकिन जब से सपा के मुलायम सिंह ने भाजपा के कल्याण सिंह से हाथ मिलाया है..... तब से समाजवादी पार्टी के कुछ नेताओं ने पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया और कुछ ने छोड़ दी! क्योंकि उन नेताओं का मानना है कि कल्याण सिंह भी बाबरी विध्वंस के भागीदार है! वहीँ दूसरी ओर लखनऊ सीट से सपा ने संजय दत्त को खड़ा किया था! लेकिन १९९३ में हुए बम धमाको में आरोपी होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने संजय दत्त के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी है!
इस तरह से यदि देखा जाये..... तो लगभग सभी राजनैतिक पार्टियों में कुछ न कुछ खामियां है! इसलिए फैसला अब इस देश की जनता को करना होगा.....कि अपना कीमती वोट किसे दे ??? और अंत में सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा....... कि आप अपना कीमती वोट किसी पार्टी या चुनाव निशान को न देकर....... उस प्रत्याशी को दे, जो आम जनता का हमेशा साथ दे..... गरीबो की आवाज़ को ऊपर उठाये........ "आंतकवाद और मंहगाई" जो कि इस देश की मुख्य समस्याएँ है, उन को पूरी तरह से खत्म कर दे! फिर चाहे वो प्रत्याशी किसी भी पार्टी का हो, या फिर किसी भी धर्म अथवा जाति का हो! और इसके लिए भारत के नौजवानों को आगे आना होगा, और...... चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना होगा , ताकि आने वाले समय में भारत एक सुपर पॉवर बन सके.....

Saturday, October 25, 2008

"अधूरा सपना....."

भारत एक लोकतांत्रिक देश है! यहाँ पर न कोई अमीर हैं, और न ही कोई गरीब...... सबके लिए कानून बराबर हैं! हर एक की पढ़ाई के लिए स्कूल और कॉलेज की सुविधाएँ होगी, खाने के लिए रोटी और रहने के लिए सबके पास मकान होगे ! लेकिन, कही ये सपना तो नही? हाँ ये सपना ही है......

ये तो सच हैं कि ये लोकशाही समाज हैं! लेकिन इसकी वास्तविकता कुछ और ही हैं! यहाँ गरीबों की कोई सुनने वाला नही है! घर तो छोड़ो यहाँ पर तो खाने के लाले पड़ रहे हैं...... दिन का खाना मिल गया तो रात का खाना नसीब नही होता! पढ़ने के लिए दिमाग हैं, लेकीन कॉलेज की फीस भरने के लिए पैसा नही....... कॉलेज हैं, लेकिन टीचर नही...... अगर कॉलेज रहेंगे भी तो कोसो दूर....... ! गरीबी- अमीरी का फासला इतना बढ़ गया हैं! कि अमीरों को गरीब लोग अपने पैरो की धूल लगते हैं! ये ही हैं, आज का लोकशाही समाज...... यहाँ चुनाव तो होते हैं! मगर नेताओं की झोली भरने के लिए, और गरीब जनता ही बनती है नेताओं के जीतने की सीढ़ी!

एक तरफ कई लोग भूखे मर रहे हैं, तो दूसरी ओर हमारी सरकार वोट बैंक बनाने में लगी हुई है! बच्चे सड़क पर नंगे - भूखे खाने के लिए तरस रहे है! और इसीलिए अपना बचपन भुलाकर मजदूरी कर रहे है! ताकि वे अपने एक टाइम के खाने का तो गुजारा कर सके! पैसा न होने के कारण उन बच्चो को शिक्षा अधूरी ही छोड़नी पड़ती हैं! अगर बुरे हालात को मात देकर पढ़-लिख भी लिए तो काम करने के लिए आज हुनर नही? बल्कि पैसो (डोनेशन) की मांग की जाती है! मकान खरीदने जायेंगे तो, उसकी कीमत इतनी होती हैं! कि आम आदमी घर बनाने से पहले सौ बार सोचता है! और अगर गरीबो के पास थोडी बहुत ज़मीन है भी तो ...... बिल्डर गरीब को झांसा देकर उसकी ज़मीन पर कब्जा जमा लेता है! ये गरीब लोंग जाए तो किधर जाए......? ना तो इनकी सुनने के लिए सरकार के पास टाइम हैं! और ना ही वो इनके बारे में सोचना चाहती!

एक तरफ ये हाल हैं तो दूसरी ओर आजकल के नौजवानों के लिए कॉलेज सिर्फ़ मौज मस्ती का जरिया बन गया है! और ये नौजवान रेव पार्टी जैसी पार्टियाँ अटैंड करना पसंद करते है! आज हमारे यहाँ यदि कोई बड़ा नेता या अभिनेता बीमार पड़ जाता है! तो कोने- कोने में मंत्र और पूजा-पाठ किए जाते है! और कई जगहों पर तो हवन भी किए जाते है! इसी के साथ मीडिया भी उन्ही लोगो को अपनी टी आर पी बढाने के लिए हाई-लाइट करती है! यदि यहाँ पर किसी गरीब का बच्चा मर भी जाता है, तो कोई देखता भी नही..... इसी के चलते इस देश की गरीबी ही भ्रष्टाचार की वजह बन जाती हैं ...... ! ज्यादातर इस गरीबी की शिकार वो बेबस लड़कियां बनती है! जो अपने जिस्म तक की बोली लगा देती है! और फ़िर ये ही समाज उनसे नाता तोड़ देता है! और उनको नाम दे देता है वेश्या.... ! इन गरीबों के सपने.......सपने ही रह जाते हैं, और आँखों में रह जाते है सिर्फ़......खून के आँसू !

जी हाँ! ये ही हैं, आज के समाज का आईना.......आज के समाज की वास्तविकता......आज के "समाज-का-दर्पण" ! जहाँ एक तरफ़ गरीबी से लोग परेशान हैं, तो वहीं दूसरी तरफ़ लोग रेव पार्टी जैसी पार्टियों में बिजी हैं! इस गरीब जनता के सवाल का जवाब कौन देगा? कौन सुनेगा इनकी पुकार? समाज के इस खोखले कानून की वजह से बढ़ रहे अत्याचार का खात्मा कैसे होगा? आख़िर कब तक इन गरीबो के सपनो के साथ खिलवाड़ किया जायगा?

Thursday, October 09, 2008

"रियालिटी शो" की "वास्तविकता"

'रियालिटी शो' जैसे कि शब्द से ही पता चलता है, कि 'रियल का शो' या 'वास्तविक शो' ! आजकल रियालिटी शो एक फैशन सा बन गया है! छोटे परदे यानि टी वी चैनलों जैसे - 9X , STAR ONE , SONY , NDTV Imegin, और MTV पर एक से बढ़कर एक रियाल्टी शो दिखाए जा रहे है! परन्तु क्या इन रियालिटी शो में पूरी तरह से वास्तविकता दिखाई जा रही है?

जहाँ तक कि सलमान खान का 'दस का दम' और शाहरुख़ खान का 'क्या आप पांचवी पास से तेज़ है' , का सवाल है! तो इन शो में सवालों के सही जवाब देने पर इनाम कि राशिः दी जाती है! लेकिन इसके अलावा कई संगीत और डांस की प्रतिस्पर्धाओ के शो चलाये जा रहे है! जैसे - 'ज़रा नच के दिखा' , 'माहि वे' , 'एक से बढ़कर एक' ! परन्तु क्या इन रियालिटी शो में पूरी तरह से रियालिटी है?

क्योकि इन शो में कलाकारों को उनकी प्रतिभा के अनुसार नही , अपितु जनता के SMS वोटो के द्वारा जिताया जा रहा है! इन रियालिटी शो में जब तीन जज निर्णय करने के लिए बैठे होते है, तो उनका निर्णय ही अन्तिम और सर्वेमान्य होना चाहिए! फ़िर SMS वोटिंग की क्या ज़रूरत ? और यदि जनता के SMS वोटिंग के आधार पर कलाकारों को जिताया जा रहा है, तो फ़िर जज क्यों बैठे है?

चूँकि वास्तविकता कुछ और है..... इसलिए रियालिटी शो में जनता द्वारा किए गए SMS वोटिंग से ही किसी को भी विजयी किया जा सकता है! फ़िर चाहे उसमे प्रतिभा हो या न हो.... और एक प्रतिभावान व्यक्ति उसमे पराजित हो जाता है! क्योकि उसको ज़्यादा वोट नही मिल पाते! लेकिन हमारे भारत की जनता इतनी सीधी है, कि वो सिर्फ़ भावनाओं में बहकर और कलाकारों के बाहरी दिखावे से प्रभावित होकर ग़लत निर्णय ले लेती है! जिसके कारण प्रतिभावान व्यक्ति को पराजित न होते हुए भी पराजय का सामना करना पड़ता है!

इसलिए कलाकारों के रिश्तेदार , यार - दोस्त अपने कलाकार को जिताने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा SMS वोटिंग करते है! और रिश्तेदारो , यार - दोस्तों की इस सोच का फायदा उठाकर मोबाइल कम्युनिकेशन कम्पनियाँ , ( जैसे - AIRTEL , IDEA , VODAFONE , TATA , BSNL आदि ) , इन SMS का 3 रुपए से लेकर 6 रुपए तक चार्ज कर रही है! इस प्रकार सीधी - साधी जनता के पैसो से ही कम्पनियाँ कलाकारों को इनाम बाँट रही है!

किंतु MTV चैनल पर दिखाये जाने वाले रियालिटी शो 'MTV रोडीज़' की तो रियालिटी ही कुछ अलग ही तरह की है! इस शो में कलाकारों से कर्तव्य ( अशलील हरक़ते ) करायी जाती है! जिस से समाज में अश्लीलता फैलने का खतरा बढ़ रह है! क्या ये सब वास्तव में हो रहा है? या फ़िर एक सोचा समझा प्लान है?

इसी तरह से 9X चैनल पर प्रसारित होने वाले रियालिटी शो 'टिकट टू बॉलीवुड' और BINDAAS चैनल पर प्रसारित होने वाले रियालिटी शो 'दादागिरी' में कलाकारों और होस्ट एक - दूसरे के साथ गाली - गलौच से बातें करते हुए नज़र आयेगे , और साथ में मार - पीट भी......क्या ये सब वास्तव में होता है? क्या यही रियालिटी है?

Friday, September 05, 2008

फ्रेशर-पार्टी

" एन्रिकुए इग्लेसिअस " की धुन अपने शबाब पर जोरो-शोरो से बज रही है! कहीं युवा इसकी धुनों के साथ अपने ताल से ताल मिला रहे है, तो कहीं जाम से जाम टकराय जा रहे है! जैसे-जैसे रात ढल रही है वैसे-वैसे पार्टी अपने शबाब पर ढलती जा रही है!
जी हाँ हम बात कर रहे है, "आमतौर पर होने वाली डिस्को-फ्रेशर पार्टी की! आज से कुछ साल पहले फ्रेशर पार्टी कुछ अलग ढंग से मनाई जाती थी! पहले ये सिर्फ़ जान-पहचान का जरिया हुआ करता था, युवा आते और अपना नाम, रुचियाँ आदि बताकर चले जाते! इसके साथ ही साथ खेल या क्विज कांटेस्ट भी हुआ करते थे!
परन्तु जैसे-जैसे दुनिया बदल रही है वैसे-वैसे फ्रेशर पार्टी को मानाने का भी अंदाज़ बदल रहा है! अब ये पार्टियाँ ज्यादातर डिस्को में ही आयोजित की जाती है! जहाँ पर नवयुवक और नवयुवतियाँ एक दूसरे के साथ नाचते, शराब पीते,और धुम्रपान के साथ मौज मस्ती करते है! ये प्रत्येक कॉलेज मे त्यौहार की तरह मनाया जा रहा है! इन पार्टियों को आयोजित करने का मकसद होता है कि पार्टी में कोई छोटा-बड़ा नही होता! सब एक साथ मिलकर इसका लुत्फ़ उठाते है! इससे हमें एक-दूसरे को समझने में काफ़ी मदद मिलती है! पार्टी को खुशनुमा बनाये रखने के लिए मिस्टर और मिसेज फ्रेशर का भी आयोजन किया जाता है!
आमतौर पर ये देखा गया है कि इन पार्टियों में शराब खुले तौर पर बेची और खरीदी जाती है! लेकिन सवाल ये उठता है कि ऐसी पार्टियाँ केवल डिस्को में ही क्यों होती है? क्या हम इसे कॉलेज में आयोजित नही कर सकते है? क्या कॉलेज में पार्टी मनाने से हम एक-दूसरे को समझ नही पायेगे? क्या " हमें एक-दूसरे की मदद करने में शर्म आयेगी?"
जो पैसे डिस्को की एंट्री में और मौज-मस्ती करने में युवा उड़ा देते है अगर वही पैसे युवा डिस्को में पार्टी न करके कॉलेज में करते है, तो उससे इकठ्ठा कि गई राशि किसी अनाथालय में दान दी जा सकती है, जिससे उन्हें आंतरिक खुशी तो मिलेगी ही और साथ ही साथ उनकी फ्रेशर पार्टी एक सुखद यादगार लम्हे के तौर पर आजीवन याद रहेगी!